इस लेख को पढ़ने के बाद आप निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दे सकेंगे
- ज्ञान का अर्थ क्या होता है?
- What is the meaning of Knowledge?
- ज्ञान की विभिन्न परिभाषाएं
- Different Definitions of Knowledge.
- अनुभवाद का सिद्धांत क्या है?
- What is the theory of empiricism?
- बुद्धिवाद का सिद्धांत क्या है?
- What is theTheory of rationalism
- प्रयोजनवाद का सिद्धांत क्या है?
- तर्कवाद का सिद्धांत क्या है?
- योगवाद का सिद्धांत क्या है?
- समीक्षावाद का सिद्धांत क्या है?
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ज्ञान का अर्थ
- ज्ञान शब्द 'ज्ञ' धातु से बना है जिसका अर्थ है:- जानना, बोध, साक्षात अनुभव अथवा प्रकाश। सरल शब्दों में कहा जाए तो किसी वस्तु अथवा विषय के स्वरूप का वैसा ही अनुभव करना ही पूर्ण ज्ञान है। उदाहरण के लिए मान लीजिये कि यदि हमें दूर से पानी दिखाई दे रहा है और निकट जाने पर भी हमें पानी ही मिलता है तो कहा जाएगा अमुक जगह पानी होने का वास्तविक ज्ञान हुआ।
- इसके विपरीत यदि निकट जाकर हमें पानी के स्थान पर रेत दिखाई दे क्यों कहा जाएगा कि अमुक जगह पर पानी होने का जो बोध हुआ वह गलत था। ज्ञान एक प्रकार की मनोदशा है। ज्ञान, ज्ञाता के मन में पैदा होने वाली एक प्रकार की हलचल है. हमारे मन में अनेक विचार आते हैं और हमारी खूब सारी मान्यताएं होती हैं जो हमारे मन में हलचल उत्पन्न करती है। मानवीय ज्ञान की पुख्ता समझ बनाने के लिए हमें कुछ अनिवार्य शर्तें निर्धारित करनी होंगी जैसे विश्वास की अनिवार्यता, विश्वास का सत्य होना और प्रामाणिकता का पर्याप्त आधार होना।
- प्लूटो के अनुसार, "विचारों की देवीय व्यवस्था और आत्मा परमात्मा के स्वरूप को जानना ही सच्चा ज्ञान है।" प्लूटो की परिभाषा के अनुसार विद्वानों ने ज्ञान को मात्र अनुभव तक ही सीमित नहीं माना क्योंकि अनुभव में कई संदेह, अस्पष्टता एवं अनिश्चितता मिली मिली रहती है।
१. अनुभववाद का सिद्धांत
- इस सिद्धांत के जन्मदाता जॉन लॉक हैं। अनुभववाद के सिद्धांत के अनुसार, "अनुभव ही ज्ञान की जननी है। " जॉन लॉक के अनुसार जन्म के समय बालक का मन एक कोरे कागज के समान होता है जिस पर कुछ भी लिखा जा सकता है। जैसे-जैसे बालक बाहरी वातावरण के संपर्क में आता है वैसे वैसे संवेदना के रूप में वस्तुओं के चिन्ह मस्तिष्क में अंकित होने लगते हैं। इस प्रकार अनुभववाद के सिद्धांत के अनुसार ज्ञान की सामग्री बाहरी वातावरण से आती है।
- अनुभववाद सिद्धांत के अनुसार हमारी जान जन्मजात नहीं है बल्कि अर्जित है। हर प्रकार का ज्ञान अनुभव द्वारा प्राप्त किया जाता है। अनुभव को समस्त ज्ञान का स्रोत माना जाता है। यह संपूर्ण ज्ञान हमारे मस्तिष्क या मन के बाहर से आता है अंदर से नहीं। मनुष्य जाति को ज्ञान विनने विनने इंद्रियों के माध्यम से मिलता है अनुभव वाद के प्राचीन रूप में ज्ञान की प्राप्ति में बुद्धि का कोई भी योगदान नहीं होता।
२. बुद्धिवाद का सिद्धांत
- इस सिद्धांत का प्रतिपादन सुकरात और प्लूटो द्वारा किया गया। इस सिद्धांत के अनुसार सच्चे ज्ञान की उत्पत्ति बुद्धि से होती है। सुकरात और प्लेटो ने यह भी माना है कि इंद्रिय ज्ञान असत्य और अस्थाई है या फिर काल्पनिक है। बुद्धिवाद का सिद्धांत आरंभ प्रवर्तक भी कहा जाता है। बुद्धिवाद का सिद्धांत ज्ञान मीमांसा के स्वरूप और स्रोत संबंध का द्वितीय सिद्धांत है।
- केवल बुद्धि के द्वारा ही निश्चित, सत्य और सार्वभौमिक ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है अर्थात बुद्धि ज्ञान का अंतिम साक्ष्य है। हमें बुद्धि जन्म से मिलती है और इस सिद्धांत के अनुसार हमें उसी से समस्त प्रकार का ज्ञान प्राप्त होता है। बुद्धिवाद के सिद्धांत के अनुसार ज्ञान का संबंध हमारे जन्म से है अर्थात जन्मजात हैं।
३. प्रयोजनवाद का सिद्धांत
- प्रयोजनवाद का सिद्धांत ज्ञान केंद्र और तर्क दोनों से संबंध रखता है। प्रयोजनवाद का सिद्धांत पूरी तरह से प्रयोगों पर आधारित है। यदि हम वर्तमान समय की बात करें तो प्रयोजनवाद का सिद्धांत ज्ञान प्राप्त करने की विधि का समर्थन करता है। प्रयोजनवाद के सिद्धांत के अनुसार सच्चे ज्ञान प्राप्त करने की सर्वोत्तम विधि प्रयोग या अनुभव विधि है।
- प्रयोजनवाद के सिद्धांत के अनुसार हमारे लिए केवल वही ज्ञान उपयोगी है जिसे हम स्वयं अनुभव के आधार पर प्राप्त करते हैं। इस सिद्धांत के अनुसार ज्ञान की सत्यता या असत्यता की जांच प्रयोगों द्वारा ही की जा सकती है। इस प्रकार हम प्रयोजनवाद केस्को प्रयोगवाद का सिद्धांत देख सकते हैं।
४. संवेद विवेकपूर्ण अथवा तर्कवाद का सिद्धांत
- इस सिद्धांत का प्रतिपादन भी अरस्तु द्वारा किया गया था। इस सिद्धांत के अनुसार अरस्तु द्वारा अनुभववाद अथवा पूर्ण तर्कवाद को स्वीकार नहीं किया गया। सामवेद विवेकपूर्ण सिद्धांत के प्रतिपादक अरस्तु मानते थे कि चेतन सामग्री की क्षमता को तर्क के द्वारा वास्तविक बनाया जाता है और इस प्रकार हमारे पास विचारों तथ्यों सिद्धांतों तथा ज्ञान का विस्तृत स्वरूप होता है।
- संवेद विवेकपूर्ण सिद्धांत के अनुसार अनुभववाद और बुद्धिवाद दोनों अंधविश्वासी हैं। हम अनुभव के साथ ज्ञान के उद्देश्य पूर्ण करने के लिए कार्य आरंभ तो कर सकते हैं किंतु अनुभव स्वयं में ज्ञान नहीं देते हैं। ज्ञान को स्वरूप देने के लिए तर्क की आवश्यकता होती है।
५. योग वाद का सिद्धांत
- योगवाद के सिद्धांत के प्रतिपादक पतंजलि थे। दर्शन के क्षेत्र में इस सिद्धांत का काफी महत्व है। इस सिद्धांत के अंतर्गत महर्षि पतंजलि ने बताया है कि मस्तिष्क की एक प्रमुख यह विशेषता है कि यह व्यग्र है और इसके साथ साथ अज्ञानता है जो सभी प्रकार के शारीरिक तथा मानसिक विचलनों की वास्तविक जड़ है। योग का मुख्य उद्देश्य मानसिक चंचलता को नियंत्रित करना है अर्थात मानसिक चंचलता को एक बिंदु पर केंद्रित करना है और साथ ही बुराइयों की जड़ अज्ञानता को जड़ से खत्म करना है।
- योग सिद्धांत के अनुसार मनुष्य की चंचलता को नियंत्रित करने का एकमात्र साधन योग साधना ही है जिसमें कुछ शारीरिक तथा कुछ मानसिक क्रियाएं करवाई जाए जिससे मन केंद्रित हो सके। जब कोई योगी एक ऐसे स्तर तक पहुंच जाता है तो ज्ञान आत्मा को अनुभव करने लगता। योग के सिद्धांत के बल पर नैतिक क्षेत्र में चलने के लिए अभिप्रेरणा का दर्शन मिलता है।
६. समीक्षावाद का सिद्धांत
- समीक्षावाद का सिद्धांत किसी भी दार्शनिक प्रणाली को न तो बुद्धिमान मानता है और न ही अनुभव वादी मानता है।समीक्षा वाद के सिद्धांत के अनुसार बुद्धिवाद और अनुभववाद दोनों ही समस्या प्रणालियां हैं। समीक्षावाद का सिद्धांत किसी भी तरह की घटना के ऊपर समीक्षा पर बल देता अर्थात उसको परखने पर है।
Tipe of explanation of ianalysis is good.thanks
ReplyDeleteThanks
DeleteGood
ReplyDeleteOr siddhanto ke bare me btay ...
Deleteआपने तीन ही सिद्धांत डाल रखे है इसके और सिद्धांत भी डालो
ReplyDelete"Parnassianscafe" website par hai brother uspr dhundo
DeleteSabhi siddhant daal diye gaye
DeleteBilkul sir
ReplyDeletev nice
ReplyDeleteThanks
DeleteRead my article and please review it. Thanks You
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