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शिक्षण के विभिन्न स्तर (Different levels of Teaching) |
इस लेख को पढ़ने के बाद आप निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दे पाने में समर्थ हो सकेंगे
१. शिक्षण के विभिन्न स्तर कौन-कौन से हैं? विस्तार पूर्वक उल्लेख कीजिए।
२. शिक्षण के विभिन्न स्तरों को बताइए। स्मृति स्तर के शिक्षण की व्याख्या कीजिए।
३. शिक्षण के स्मृति, बोध तथा चिंतन स्तर की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
४. चिंतन स्तर के शिक्षण की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
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✓✓अत्यंत महत्वपूर्ण प्रश्न
शिक्षण को एक उद्देश्य पूर्ण प्रक्रिया माना जाता है। इस प्रक्रिया का संबंध अधिगम से बहुत ही गहरा है। पाठ्यवस्तु का अपना स्वरूप होता है जिससे शिक्षण के विभिन्न उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके। पाठ्यवस्तु को निम्नलिखित तीन स्तर पर प्रस्तुत किया जा सकता है।
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Different levels of Teaching |
. स्मृति स्तर का
शिक्षण (Memory Level of Teaching)
बोध स्तर
का शिक्षण (Understanding Level of Teaching)
चिंतन स्तर का
शिक्षण (Reflective Level Of Teaching)
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१. स्मृति स्तर शिक्षण (Memory Level of Teaching)
- स्मृति स्तर विचारहीन होता है। इसे शिक्षण की प्रारंभिक अवस्था माना जाता है। सामान्य रूप से शिक्षण का स्तर किस स्मृति स्तर का ही होता है। ऐसे विद्वान और कुशल शिक्षक बहुत कम दिखाई पड़ते हैं, जो अपने शिक्षण के स्तर को चिंतन स्तर तक पहुंचने में सफल होते हैं इस स्तर के शिक्षण में केवल तथ्यों तथा सूचनाओं के प्रस्तुतीकरण एवं रटने पर बल दिया जाता है। स्मृति स्तर के शिक्षण की क्रियाओं द्वारा पाठ्यक्रम को केबल रेटाने पर ही बल दिया जाता है।
- पाठ्यक्रम के तथ्यों को रटने की क्षमता का बुद्धि से कोई संबंध नहीं होता इसका कारण यह है कि रटने का कार्य तो मंद बुद्धि वाले विद्यार्थी भी कर सकते हैं। इस प्रकार स्मृति स्तर के शिक्षण में सूझबूझ का अभाव होता है। इस स्तर के शिक्षण में विद्यार्थियों के मस्तिष्क में ज्ञानात्मक स्तर पर तथ्यों एवं सूचनाओं को बाहर से बलपूर्वक ठूंसा जाता है।
- स्मृति स्तर के शिक्षण का एक निश्चित क्रम होता है, जिसमें शिक्षक का स्थान मुख्य होता है तथा विद्यार्थी का द्वितीय। इस स्तर के शिक्षण में शिक्षक एक तानाशाह की भांति होता है जो विद्यार्थी की स्वतंत्रता तथा उनकी रुचिओं क्षमताओं, रुझानों को दबाकर सूचना थोपना चाहता है। इस प्रकार इस स्तर के शिक्षण में अध्यापक तो सक्रिय रहता है, परंतु विद्यार्थी निष्क्रिय श्रोता बना रहता है। इस प्रकार स्मृति स्तर के शिक्षण में अध्यापक और विद्यार्थी में अंत: क्रिया नहीं होती। समस्त शिक्षण का कार्य यांत्रिक ढंग से संपन्न होता रहता है। सीखी हुई पाठ्यवस्तु के मूल्यांकन के लिए निबंधात्मक तथा वस्तुनिष्ठ प्रकार की परीक्षाओं का प्रयोग किया जाता है।
- उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि ऐसा शिक्षण शिक्षक प्रधान होता है। इसमें विद्यार्थी का मानसिक विकास नहीं होता। इस स्तर का शिक्षण ज्ञानात्मक पक्ष तक ही सीमित रहता है। इस स्तर के शिक्षण में अभिप्रेरणा का स्तर भी न्यूनतम होता है और सीखे हुए ज्ञान का मूल्यांकन भी परंपरागत विधि से ही किया जाता है। बोध तथा चिंतन स्तर पर शिक्षण केवल उसी समय सफल हो सकता है, जब पहले स्मृति स्तर पर शिक्षण की व्यवस्था हो चुकी हो।
- संस्कृत, व्याकरण तथा इतिहास आदि विषयों के शिक्षण में स्मृति स्तर का शिक्षण में सफल एवं प्रभावशाली होता है।
स्मृति स्तर के शिक्षण के लिए सुझाव
(Suggestions for Memory Level of Teaching)
स्मृति स्तर के शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए गए हैं:-
- शिक्षक को चाहिए कि वह केवल ज्ञानात्मक उद्देश्य को प्राप्त करने का प्रयास करे।
- प्रस्तुत की जाने वाली पाठ्यवस्तु सार्थक होनी चाहिए।
- शिक्षण के सभी बिंदुओं को समग्र रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
- पाठ्यवस्तु को क्रमबद्ध रूप में प्रस्तुत करना चाहिए।
- पुनर्बलन प्रणाली का प्रयोग करना चाहिए।
- जब विद्यार्थी थके हुए हो तो शिक्षण नहीं करना चाहिए।
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२. बोध स्तर का शिक्षणUnderstanding Level of Teaching
- बूथ स्तर के शिक्षण के लिए पहली शर्त है - स्मृति स्तर के शिक्षण का होना। स्मृति स्तर के शिक्षण के बिना वांछित परिणाम प्राप्त करने की आशा करना मात्र कल्पना करना ही है। बोध स्तर पर विद्यार्थियों को सामान्यीकरण तथा सिद्धांत एवं तथ्यों के संबंध में बोध कराने पर बल दिया जाता है। यदि शिक्षक को अपने इस प्रयास में सफलता मिलती है तो विद्यार्थियों में नियमों को पहचानने, समझने तथा उन्हें प्रयोग करने की क्षमता विकसित हो जाती है। इन प्रयासों के परिणाम स्वरुप शिक्षण अर्थ पूर्ण हो जाता है।
बोध स्तर के शिक्षण की आलोचना(Criticism Of Teaching at Understanding Level)
- मॉरिसन के अनुसार शिक्षक की विषय वस्तु में तल्लीनता को ही विद्यार्थियों के लिए प्रेरणा माना है जबकि मनोवैज्ञानिक प्रेरणा इससे कहीं अधिक प्रभावशाली सिद्ध हो सकती है।
- बोध स्तर का शिक्षण मनोवैज्ञानिक तथा व्यवहारिक दृष्टि से प्रभावात्मक प्रतिमान माना जाता है।
- इस शिक्षण प्रणाली की समस्या यह है कि इसमें पाठ्यवस्तु के अधिकार पर ही बल दिया जाता है मानवीय व्यवहार को ध्यान में नहीं रखा जाता।
- बोध स्तर के शिक्षण द्वारा विद्यार्थियों को पाठ्यवस्तु का ज्ञान था के साथ बोध कराया जा सकता है।
३. चिंतन स्तर का शिक्षण Reflective Level Of Teaching
- चिंतन स्तर के शिक्षण में स्मृति और बोध दोनों ही स्तरों का शिक्षण शामिल होता है।इसका अर्थ यह हुआ कि यदि कक्षा में स्मृति और बूथ स्तर का शिक्षण नहीं हुआ तो वहां चिंतन स्तर का शिक्षण सफल और प्रभावशाली हो ही नहीं सकता।अतः चिंतन स्तर के शिक्षण के लिए आवश्यक है कि शिक्षण की व्यवस्था पहले समिति तथा बौद्ध स्तरों पर अवश्य हो चुकी हो। दूसरे शब्दों में चिंतन स्तर का शिक्षण समस्या केंद्रित शिक्षण होता है। इस प्रकार की परिस्थिति में कक्षा का वातावरण खुला हुआ होता है।
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- इसमें शिक्षण विद्यार्थियों के सामने ऐसी समस्या उत्पन्न करता है जिससे विद्यार्थियों में इतना मानसिक तनाव पैदा हो जाता है कि वह स्वयं प्रेरित हो जाते हैं और सक्रिय होकर समस्या को सुलझाने के लिए अपनी उपकल्पना बनाकर उसका परीक्षण करना आरंभ कर देते हैं । अंत में एक ऐसा समय आता है कि समस्या सुलझ जाती है।चिंतन स्तर का शिक्षण विद्यार्थियों के बौद्धिक व्यवहार को विकसित करने के अवसर प्रदान करते हुए उनमें सृजनात्मक क्षमताएं विकसित करने में सहयोग प्रदान करता है।
- चिंतन स्तर के शिक्षण द्वारा विद्यार्थियों के चिंतन शक्ति का विकास किया जा सकता है। चिंतन शक्ति के विकसित हो जाने से वे बड़े होने पर चिंतन तर्क तथा कल्पना द्वारा अपने जीवन से संबंधित अनेक समस्याओं को सुलझा कर सफल तथा आनंदमय जीवन व्यतीत कर सकते हैं।
- चिंतन स्तर के शिक्षण में विद्यार्थी समस्या को सुलझाने के लिए गहन तथा गंभीर चिंतन द्वारा अपना मौलिक दृष्टिकोण बनाता है और तत्पश्चात समस्या को सरलता पूर्वक सुलझा लेता है।
चिंतन स्तर के शिक्षण की आलोचना
Criticism of Reflective Level of Teaching
- चिंतन स्तर पर शिक्षण समस्या केंद्रित होता है।
- चिंतन स्तर का शिक्षण केवल पाठ्यक्रम पाठ्यवस्तु तथा पाठ्यपुस्तक तक ही सीमित नहीं किया जा सकता।
- इस स्तर के शिक्षण की व्यवस्था केवल उच्च कक्षा के विद्यार्थियों के लिए ही की जा सकती है क्योंकि चिंतन स्तर के शिक्षण में आयु तथा परिपक्वता का विशेष महत्व होता है।
- स्मृति तथा बौद्ध स्थलों की भांति चिंतन स्तर में किसी निश्चित पाठ कार्यक्रम का अनुसरण नहीं किया जा सकता।
- इस स्तर के शिक्षण में विद्यार्थी अपने शिक्षक की खूब आलोचना कर सकते हैं।
- इस प्रकार के शिक्षण में केवल सामूहिक वाद विवाद को ही प्रभावशाली माना जाता है।
v nice
ReplyDeleteThanks
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ReplyDeletethanks
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ReplyDeleteसर इसमें केवल एक ही स्तर का उल्लेख किया गया है, कृपया बाकिस्ट्रांग का भी उल्लेख कीजिए
ReplyDeleteसभी का उल्लेख किया जा चुका है
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ReplyDeleteधन्यावद सर्, आपका लेख बहुत ही आकर्षक है, जैसा कि एक महानुभाव ने कह कि इसमें सिर्फ एक ही स्तर का उल्लेख है तो हम भी चाहते हैं कि आप बाकी दोनो बोध और चिंतन स्तर की भी व्याख्या दें।
ReplyDeleteHelpful
ReplyDeleteशिक्षण सूत्र एवं शिक्षण उक्तियों के बारे में जानने के लिए यहाँ क्लिक करें
ReplyDeleteधन्यवाद,अत्यंत सहायक लेख है।
ReplyDeleteकृपया अन्य दो स्तर भी विस्तारित करने की कृपा करें।
ReplyDeleteVery helpful article nice explain
ReplyDeleteShikshan k pratyek istar tatha istron k pratimano k bare m bataiye
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