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शिक्षण व्यूह रचना का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and definition of teaching strategy) |
शिक्षण व्यूह रचना के विकास के लिए जो क्रियायें शिक्षण करता है, उन्हें शिक्षण युक्तियां कहते हैं।शिक्षण का व्यवहार तथा प्रभाव जो शिक्षण के उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक होते हैं उन्हें भी शिक्षण युक्ति माना जाता है। इनकी सहायता से शिक्षक अनुदेशन को प्रयुक्त करता है और छात्र तथा शिक्षक के मध्य अन्तःप्रक्रिया होती है।शिक्षक युक्तियों का विस्तार अशाब्दिक व्यवहार से लेकर शाब्दिक व्यवहार तक होता है। शिक्षक के दोनों ही प्रकार के व्यवहार सार्थक होते हैं और छात्र के व्यवहार से संबंधित होते हैं।
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शिक्षण व्यूह रचनाओं के प्रकार
v
व्याख्यान व्यूह रचना
v प्रदर्शन व्यूह रचना
v खोज व्यूह रचना
v ऐतिहासिक खोज विधि
v परियोजना व्यूह रचना
v गृह कार्य
v टी ग्रुप रचना अथवा नेता विहीन समूह
v मस्तिष्क उद्वेलन
v पात्र अभिनय
v टोली शिक्षण
v प्रदर्शन व्यूह रचना
v खोज व्यूह रचना
v ऐतिहासिक खोज विधि
v परियोजना व्यूह रचना
v गृह कार्य
v टी ग्रुप रचना अथवा नेता विहीन समूह
v मस्तिष्क उद्वेलन
v पात्र अभिनय
v टोली शिक्षण
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भाषण व्यूह रचना अथवा व्याख्यान व्यूह रचना
(Lecture strategy)
- जब अध्यापक अपने पाठ के विषय से संबंधित विचारों को स्पष्ट करने की कोई छोटी या लंबी व्याख्या का सहारा लेता है तो उसे भाषण विधि की संज्ञा दी जाती है। इस विधि को व्याख्यान विधि भी कहते हैं। वैसे तो व्याख्यान विधि कोई नई विधि नहीं है, परंतु वह परंपरागत प्रभुत्ववादी विधि है। अनेक विद्वानों के अनुसार भाषण विधि को स्थिति के अनुसार छोटा या लंबा किया जा सकता है। इसलिए भाषण विधि विद्यार्थियों को ज्ञान देने के लिए बहुत ही आसान विधि है, परंतु कुछ व्यक्ति इन विद्वानों के मत से असहमत हैं, क्योंकि वह ऐसा सोचते हैं कि भाषण विधि से ना तो छोटी कक्षाओं के विद्यार्थी कोई लाभ उठा सकते हैं और ना ही बड़ी कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए यह प्रभावशाली है।
- भाषण विधि एकमार्गी विधि है, क्योंकि इस विधि के अंतर्गत केवल प्रस्तुतीकरण पर ही बल दिया जाता है। फलस्वरूप इस प्रक्रिया में अध्यापक तो सक्रिय रहता है, किंतु विद्यार्थी निष्क्रिय श्रोता ही बनकर रह जाता है। इस प्रकार कक्षा-कक्ष में अध्यापक और विद्यार्थियों के बीच होने वाली अंतः क्रिया समाप्त हो जाती है और कक्षा में नीरसता का साम्राज्य स्थापित हो जाता है। इस विधि के प्रयोग से विद्यार्थियों को अनुक्रियाओं के अवसर नहीं के बराबर मिल पाते हैं। इसके प्रयोग से विद्यार्थियों को ज्ञान प्राप्त करने के लिए उपयुक्त प्रेरणा नहीं मिल पाती। इसके प्रयोग से शिक्षण कार्य भी कठिन हो जाता है। फलस्वरूप कक्षा-कक्ष में विद्यार्थी बोरियत अनुभव करने लगते हैं, जिससे वे कक्षा में या तो अनुशासनहीनता प्रदर्शित करेंगे या कक्षा से उठ कर चले जाएंगे।
व्याख्यान विधि के गुण
(Merits of lecture strategies)
व्याख्यान विधि के निम्नलिखित प्रमुख गुण है
v इसमें बालाको तथा बालिकाओं को ध्यान केंद्रित करने की आदत पड़ती है।
v इसमें पाठ्यवस्तु के प्रस्तुतीकरण पर बल दिया जाता है।
v इसमें समय की बचत होती है। थोड़े समय में अधिक विषय वस्तु का बोध सुगमता से कराया जाता है।
v स्पष्टीकरण की सभ्यता से बालकों को अध्ययन के लिए प्रेरणा मिलती है।
v बालको तथा बालिकाओं में मौलिक चिंतन की क्षमताओं का विकास होता है।
व्याख्यान विधि के दोष
(Demerits of lecture strategies)
व्याख्यान विधि के दोष निम्न वत बतलाए गए हैं
ü इस व्यूह रचना का प्रयोग उच्च कक्षाओं में ही किया जा सकता है। प्राथमिक कक्षाओं के लिए इसका कोई महत्व नहीं है।
ü इस बिहू रचना में बालक की अपेक्षा अध्यापक को अधिक महत्व दिया जाता है शिक्षक का एकाधिकार रहता है।
ü शिक्षण के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए यह विधि उपयोगी नहीं है।
üयह व्यू रचना मनोवैज्ञानिक है इसमें व्यक्तिगत भिन्नताओं को ध्यान में नहीं रखा जाता तथा वाला को और बालिकाओं की अभिरुचि हो तथा अभिवृत्ति ऊपर भी कोई ध्यान नहीं दिया जाता है।
ü इस व्यूह रचना में शिक्षण बिंदु पर संतुलित बल नहीं दिया जाता है इसलिए बालक तथा बालिकाओं का परीक्षा के समय निर्णय भी न्यायोचित नहीं हो पाता है।
व्याख्यान विधि के प्रयोग की परिस्थितियां
(Situations to use the lecture strategies)
भाषण विधि अथवा व्याख्यान विधि का प्रयोग निम्नलिखित तीन परिस्थितियों में करना चाहिए।
· ज्ञानात्मक पक्ष के उच्च स्तर के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए।
· ज्ञानात्मक पक्ष के निम्न स्तर के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए।
· भावात्मक उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए।
व्याख्यान विधि को प्रयोग करते समय सावधानियां
(Precautions while using the lecture strategy)
भाषण विधि अथवा व्याख्यान विधि का प्रयोग करते समय अध्यापक को निम्नलिखित सावधानियों को ध्यान में रखना चाहिए
v भाषण देते समय महत्वपूर्ण बिंदुओं पर बल देना चाहिए।
v भाषण निश्चित समय तक ही देना चाहिए।
v भाषण देने वाले को विषय का पूरा ज्ञान होना चाहिए।
v भाषण रोचक होना चाहिए, साथ ही भाषण देते समय पुस्तक अथवा नोट्स का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
v भाषण इतना लंबा तथा औपचारिक न हो कि विद्यार्थी ऊब जाएं।
v भाषण की विषय वस्तु विद्यार्थियों की रुचि तथा मानसिक स्तर के अनुसार, क्रमबद्ध रूप से संगठित होनी चाहिए।
v भाषण एक कला है, जिसमें सफलता प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयास करना चाहिए।
v भाषण देते समय सरल, रोचक एवं सार्थक दृष्टांतों का प्रयोग करना चाहिए।
v भाषण देते समय उपयुक्त शिक्षण सामग्री का प्रयोग करना चाहिए।
v भाषण विधि के साथ किसी और विधि का प्रयोग करना चाहिए जिससे विद्यार्थी भाषण को अच्छी प्रकार समझ जाएं।
v भाषण के समय अध्यापक और विद्यार्थी के बीच अंतः क्रिया अवश्य होनी चाहिये।
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