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वंशानुक्रम और वातावरण Wansaanukram aur watawaran |
वंशानुक्रम
- वंशानुक्रम शब्द अंग्रेजी भाषा के शब्द हेरेडिटी (Heredity) का हिंदी अनुवाद है। यह शब्द लैटिन भाषा के हेरेडिटरी(Hereditary) से बना है जिसका अर्थ है, "वह पूंजी जो बालक को माता-पिता से उत्तराधिकार के रूप में मिलती है।"
- वंशानुक्रम वे सभी तत्व है जो बच्चे के जन्म के साथ ही नहीं बल्कि गर्भाधान के समय भी उसमें उपस्थित होते हैं।वंशानुक्रम के इस धारणा के अंतर्गत शारीरिक, मानसिक और व्यक्तित्व के दूसरे लक्षण होते हैं।
शारीरिक लक्षण
- शारीरिक लक्षणों में चेहरा, आंखों का रंग, त्वचा, आंखों का आकार, टांगों का आकार, ग्रंथियां व लंबाई इत्यादि सम्मिलित किए जाते है।
मानसिक लक्षण
- मानसिक लक्षणों में प्रवृत्तियां, बुद्धि, स्मरण शक्ति, सूक्ष्म विचार, निर्णय तर्कशक्ति, निर्णय क्षमता तथा ध्यान इत्यादि सम्मिलित किए जाते हैं।
व्यक्तित्व लक्षण
- व्यक्तित्व लक्षण के अंतर्गत व्यवहार, स्वभाव, आदतें, संवेग आदि सम्मिलित किए जाते हैं। उपरोक्त सभी लक्षण बच्चा अपने माता-पिता से प्राप्त करता है इसलिए इन्हें वंशानुक्रम कहा जाता है।
- वंशानुक्रम के नियम
- समानता का नियम
- विभिन्नता का नियम
- प्रत्यागमन का नियम
- चयनित गुणों का सिद्धांत
- मातृ एवं पितृ पक्षों का नियम
- संयोग का नियम
- बीजकोष का नियम
- मेंडल का नियम
- गाल्टन का जीव सांख्यिकी नियम
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वंशानुक्रम की संरचना
जीन
यह सबसे छोटाअंश होता है। यह वंशानुक्रम की सबसे मूलभूत इकाई होती है। वास्तव में यह जीन ही अनुवांशिक गुणों के वाहक होते हैं।
गुणसूत्र
- गुणसूत्र में जीन होते हैं जो अनुवांशिकता को अगली पीढ़ी में स्थानांतरित करते हैं। एक युग्म पिता से व एक ही युग्म माता से मिलता है। मानव गुणसूत्रों के पहले 22 जोड़े एक समान होते है व 23वां जोड़ा शिशु का लिंग निर्धारण करता है। शिशु का लिंग मुख्यतः पिता पर निर्भर करता है।
- पिता में X, Y गुणसूत्र होता है जबकि माता में X, X गुणसूत्रगुणसूत्र का आकार झाड़ों या धागे जैसा होता है। ये गुणसूत्र या क्रोमोसोम एक जैसे नजर आते हैं लेकिन इनमें काफी आंतरिक विभिन्नताएं होती हैं।क्रोमोसोम के अंदर बहुत ही सूक्ष्म कण होते हैं जिन्हें जीन कहा जाता है।
- जीन रसायनों से बने होते हैं। साइटोप्लाज्म के अंदर जीन की गतिविधियां कोशिका की आकृति और अन्य विशेषताओं को प्रभावित करती हैं जिसके कारण व्यक्तिगत विभिन्नता होती हैं।
- दो सगे भाइयों मैं भी एक जैसी समानताएं नहीं मिलती क्योंकि उनको माता-पिता से भिन्न जींस प्राप्त होते हैं। यहां तक कि जुड़वा भाइयों के जींस में भी भिन्नता होती है लेकिन मोनोजाईगोटक जुड़वा में एक ही प्रकार के जींस होते है क्योंकि वे एक ही डिमबग्रंथियों से बने होते हैं।
बालक पर वंशानुक्रम का प्रभाव
- शारीरिक गुणों पर प्रभाव
- मूल प्रवृत्तियों पर प्रभाव
- व्यवसायिक कौशल पर प्रभाव
- सामाजिक स्तर पर प्रभाव
- जातिगत श्रेष्ठता पर प्रभाव
- चरित्र पर प्रभाव
- स्वभाव पर प्रभाव
वंशानुक्रम संबंधित विभिन्न परीक्षण
1. गार्टन का परीक्षण
- गार्टन ने 4000 व्यक्तियों में एक व्यक्ति को श्रेष्ठ मानकर 977 सुप्रसिद्ध व्यक्तियों की एक सूची बनाई और इन प्रतिभावान व्यक्तियों के वर्गों का अध्ययन किया जिनमें केवल 4 व्यक्ति ही सुप्रसिद्ध निकले। इन एकत्रित तथ्यों को उसने हेरेडिटी जीनीयस नामक पुस्तक में संकलित किया।
2. एडवर्ड वंश का अध्ययन
- डॉ ए. ई. विनाशिप ने एडवर्ड परिवार का अध्ययन किया। रिचर्ड एडवर्ड ने एक सुप्रसिद्ध महिला से विवाह किया। इस परिवार से जो वंश परंपरा चली उसमें सभी व्यक्तियों ने विभिन्न क्षेत्रों में प्रतिष्ठा प्राप्त की और उनमें से अधिकांश चरित्रवान थे। वे अच्छे पदों पर नियुक्त हुए। कुछ समय बाद रिचर्ड एडवर्ड ने एक साधारण महिला से विवाह किया। इस महिला से जो वंश चला उसमें सभी व्यक्ति साधारण को टीके दिखाई दिए।
3. कालीकाक परिवार का अध्ययन
- गोडार्ड ने मार्टिन कालिकाक नामक एक सैनिक के वंशजों का अध्ययन किया। उसका अवैध संबंध एक मंदबुद्धि महिला से हो गया। इस महिला से जो वंश चला उसके 480 वंशजों में से 143 मंदबुद्धि, 36 अवैध संतान, 33 वेश्याएं, 24 शराबी मानसिक, रोग ग्रस्त तथा 11 अपराधी व्यक्ति निकले।
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4. ज्यूक वंश का अध्ययन
- इस परिवार के इतिहास का अध्ययन डगड़ेल सेब्रुक ने किया।
5. जुड़वा बालकों का अध्ययन
- थार्नडाइक ने अपने अध्ययन के आधार पर स्पष्ट किया कि गैर जुड़वा भाई और बहनों की अपेक्षा जुड़वा बच्चों में अधिक समानता पाई जाती है।
वातावरण
- वातावरण वे प्रभाव होते हैं जो जीव को बाहर से प्रभावित करते हैं। ये कारक बालक को गर्व से ही प्रभावित करना शुरू कर देते हैं और जीवन भर प्रभावित करते रहते हैं।
वातावरण के प्रकार
1. प्राकृतिक वातावरण
- मनुष्य के संपर्क में आने वाले इस धरती के सभी जीव जंतु तथा विभिन्न प्राणी प्राकृतिक वातावरण के अनुसार ही बदलते हैं। जैसे; गर्मी-सर्दी, खान-पान, रहन-सहन इत्यादि।
2. सामाजिक वातावरण
- बच्चे का परिवार, पड़ोस, विद्यालय तथा समाज सामाजिक संबंधों से निर्मित होता है और जो सामाजिक वातावरण के अंतर्गत आता है।
3. बौद्धिक या मानसिक वातावरण
- इस वातावरण से तात्पर्य उन सभी मानसिक परिस्थितियों से है जो मस्तिष्क पर प्रभाव डालती है। इसके दृष्टिकोण में पुस्तकें, मनोरंजन के साधन, गोष्ठियां, प्रयोगशाला आदि महत्वपूर्ण तत्व है।
4. संवेगात्मक वातावरण
- इस वातावरण में संवेग पर नियंत्रण उनके उपयुक्त प्रशिक्षण से ही संभव हो सकता है। इसके लिए बालक के मित्रों, संबंधियों तथा अध्यापकों का स्वभाव ही बालक के संवेगात्मक वातावरण का निर्माण करता है।
बालक पर वातावरण का प्रभाव
- शारीरिक बनावट पर प्रभाव
- बुद्धि पर प्रभाव
- मानसिक विकास पर प्रभाव
- व्यक्तित्व पर प्रभाव
- बालक पर बहुमुखी प्रभाव
शिक्षक हेतु वंशानुक्रम संबंधी ज्ञान का महत्व
- वंशानुक्रम के नियमों को ठीक प्रकार से समझकर शिक्षक बालकों के प्रति उचित व्यवहार कर सकता है।
- वंशानुक्रम द्वारा बालकों में विभिन्न मूल प्रवृत्तियां स्थानांतरित हो ती हैं। ये प्रवृत्तियां वांछित और अवांछित दोनों तरह की होती हैं। शिक्षक वंशानुक्रम के ज्ञान के आधार पर उत्तम मूल प्रवृत्तियों का विकास और बुरी प्रवृत्तियों का दमन एवं शोधन कर सकता है।
- वंशानुक्रम बालक और बालिकाओं में लिंग भेद का निर्धारण करता है। शिक्षक वंशानुक्रम के ज्ञान के आधार पर लैंगिक भेद को समझकर उसकी शिक्षा की उत्तम व्यवस्था कर सकता है।
- वंशानुक्रम ग्रामीण और शहरी बालकों की मानसिक योग्यता को भी प्रभावित करता है शहरी बालकों में उच्च मानसिक योग्यता वंशानुक्रम के फलस्वरूप ही दिखाई देती है। शिक्षक इस ज्ञान के आधार पर अपना शिक्षण बालकों के मानसिक स्तर के अनुसार निर्धारित कर सकता है।
- वंशानुक्रम बालकों में शारीरिक अंतर उत्पन्न करता है। शिक्षक इस ज्ञान के द्वारा बालकों के शारीरिक विकास में योगदान दे सकता है।
- वंशानुक्रम बालकों में सीखने की क्षमता उत्पन्न करता है। शिक्षक वंशानुक्रम के इस ज्ञान का उपयोग देर से सीखने वाले और शीघ्रता से सीखने वाले बालकों के शिक्षण में कर सकता है।
- वंशानुक्रम बालकों के जन्मजात क्षमताओं में भेद करता है। शिक्षक द्वारा इस ज्ञान का उपयोग मंदबुद्धि बालक की शैक्षिक प्रगति में किया जा सकता है।
- वंशानुक्रम बालकों में योग्यता रुचि अभिवृद्धि आदि के संबंध में भेद करता है। यह वेद बालक के बड़े होने पर अधिक स्पष्ट होने लगता है। शिक्षक इस ज्ञान का उपयोग उचित शिक्षा व्यवस्था के आयोजन में कर सकता है।
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शिक्षक हेतु वातावरण संबंधी ज्ञान का महत्व
- बालक जन्म से ही निश्चित सांस्कृतिक वातावरण में रहता है और वह उसके मानकों के आधार पर ही व्यवहार करता है। इस ज्ञान के आधार पर शिक्षक बालकों को अपना सांस्कृतिक विकास करने में सहयोग प्रदान कर सकता है।
- बालक की भावनाएं वातावरण के फलस्वरूप अत्यधिक प्रभावित होती हैं। ये भावनाएं उसके चरित्र निर्माण के अंतर्गत उपयोगी होती हैं। इस ज्ञान के फलस्वरूप शिक्षक बालक हेतु इस प्रकार का वातावरण तैयार कर सकता है कि उसमें अच्छी भावनाओं का विकास हो सके एवं उत्तम चरित्र का निर्माण हो सके।
- प्रत्येक समाज का अपना भिन्न वातावरण होता है। बालक इस वातावरण के साथ अपना समायोजन करता है। इस ज्ञान के आधार पर शिक्षक विद्यालय को समाज के लघु रूप में ढालने का प्रयास करता है और इसके फलस्वरूप बालक अपने वास्तविक समाज के साथ आसानी से समायोजित हो सकता है।
- अच्छा वातावरण बालक की बुद्धि तथा योग्यता के विकास में सराहनीय योगदान देता है। इस ज्ञान के आधार पर शिक्षक बालकों हेतु विद्यालय में अच्छा वातावरण तैयार करने का प्रयास करता है।
- वातावरण के फलस्वरुप बालक के विकास की दिशा निर्धारित होती है। वातावरण ही बालक को एक चरित्रवान व्यक्ति के रूप में ढाल सकता है। शिक्षक इस ज्ञान का उपयोग करके उसके उत्तम विकास की दिशा निर्धारित करने में समर्थ हो सकता है।
- अनुकूल वातावरण बालक के विकास की दर तीव्र करता है जबकि प्रतिकूल वातावरण इस प्रक्रिया को बंद कर देता है। इस ज्ञान के आधार पर शिक्षक अपने छात्रों की रुचि प्रवृत्ति एवं क्षमताओं के अनुसार वातावरण तैयार करने में समर्थ हो सकता है।
- परिवार, पास पड़ोस, विद्यालय, खेल के मैदान आदि जीवन को प्रभावित करते हैं। वातावरण के ज्ञान के आधार पर शिक्षक बालक का उचित मार्गदर्शन करने में समर्थ हो सकता है।
- वातावरण के महत्व की ओर ध्यान देने वाला शिक्षक विद्यालय के वातावरण को अनियंत्रित ढंग से इस तरह तैयार कर सकता है कि बालक का बहुमुखी विकास संभव हो सके।
निष्कर्ष
- एक शिक्षक हेतु बालक के विकास का वंशानुक्रम एवं वातावरण के सापेक्ष प्रभाव और पारस्परिक संबंध का ज्ञान विशेष महत्व रखता है।
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