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लिंग का अर्थ । लिंग विभेद । प्रकार और कारण Meaning of gender । Gender Discrimination Its Type And Reasons |
लिंग का अर्थ (Meaning of gender)
- मनुष्य दो रूपों में जन्म लेता है:- स्त्री और पुरुष जिसे प्रारंभिक अवस्था में बालिका तथा बालक कहा जाता है। बालक तथा बालिकाओं की शारीरिक संरचना में ही विभेद नहीं होता बल्कि दोनों की रुचियों, अभिवृत्तियों तथा क्रियाकलापों में भी विभिन्नता पाई जाती है।
- जैविक रूप में लिंग को परिभाषित करते हुए कहा जा सकता है कि जब स्त्री तथा पुरुष के XX गुणसूत्र मिलते हैं तब बालिका और स्त्री-पुरुष के XY गुणसूत्र मिलते हैं तो बालक का निर्माण होता है। स्पष्ट है कि लिंग के निर्धारण में जैविक संप्रत्यय महत्वपूर्ण है न की स्त्री या पुरुष की अपनी खुद की इच्छा।
- लिंग निर्धारण की प्रक्रिया ऐच्छिक न होकर अनेक्छिक है।अतः इस हेतु किसी को भी दोष नहीं दिया जा सकता। फिर भी लिंग के आधार पर भेदभाव किया जाता है तथा बालकों की तुलना में बालिकाओं को तुच्छ समझा जाता है।
- लिंग एक परिवर्तनशील धारा है जिसमें एक ही संस्कृति, जाति, वर्ग तथा आर्थिक परिस्थितियों और आयु में एक संस्कृति से दूसरी संस्कृति तथा एक सामाजिक समूह से दूसरे सामाजिक समूह में भी भिन्नता होती हैं। स्त्री पुरुष के लिंग के निर्धारण में जैविक तथा शारीरिक स्थितियों के साथ-साथ सामाजिक तथा सांस्कृतिक बोधों को दृष्टिगत रखना चाहिए।
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लिंग विभेद (Gender discrimination)
- लिंग विभेद से तात्पर्य है:- बालक तथा बालिकाओं के मध्य व्याप्त व्यापक लैंगिक असमानता । बालक तथा बालिकाओं में उनके लिंग केेेेेेे आधार पर भेद करना जिसके कारण बालिकाओं को समााज में शिक्षा तथा पालन पोषण में बालकों सेे निम्नन स्तर स्थिति में रखा जाता है जिससेेेे वे पिछड़ जाती हैं, लिंग विभेद कहलाता है।
विभेद के प्रकार (Types of differentiation)
- जातिगत विभेद (Caste discrimination)
- प्रजातीय विभेद (Racial discrimination)
- लिंग विभेद (Gender discrimination)
- भाषाई विभेद (Linguistic discrimination)
- रंग रूप विभेद (Color discrimination)
- सांस्कृतिक विभेद (Cultural discrimination)
- आर्थिक विभेद (Economic discrimination)
- स्थान आगत विभेद (Location input discrimination)
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लिंग भेदभाव के कारण (Reasons for gender discrimination)
- लिंग विभेद जैसा कि पूर्व में उल्लेख किया जा चुका है कि आज से ही नहीं बल्कि प्राचीन काल से चला आ रहा है और यह विभेद भारत में ही नहीं विश्व के कई देशों में चल रहा है। विभिन्न प्रकार के होते हैं जिनमें कुछ निम्न प्रकार हैं
मान्यताएं तथा परंपराएं (Beliefs and traditions)
- लिंग विभेद का एक प्रमुख कारण भारतीय मान्यताओं तथा परंपराओं का है। यहां ऐसी मान्यता है कि जीवित पुत्र का मुख मात्र देखने से पुण्य कि प्राप्ति होती है। श्राद्ध और पिण्ड दान का अधिकार भी पुत्रों को ही प्राप्त है जबकि स्त्रियों को चिता को अग्नि देने तक का अधिकार भी नहीं दिया गया है। इन सब के कारण पुत्र को अधिक महत्व दिया जाता है और वंश को चलाने में भी पुरुषों को ही प्रधान माना गया है।
- अथर्ववेद में वर्णन आया है कि स्त्री को बाल्यकाल में पिता के अधीन, युवावस्था में पति के अधीन तथा वृद्धावस्था में पुत्र के अधीन रहना चाहिए। इस प्रकार स्त्रियों का अस्तित्व मान्यताओं, परंपराओं और सुरक्षा की बलि चढ़ा दिया जाता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि मान्यताएं तथा परंपराएं लिंगभेद में वृद्धि करने का प्रमुख कारण है।
संकीर्ण विचारधारा (Narrow ideology)
- बालक-बालिका में भेद का एक कारण लोगों की संकीर्ण विचारधारा है। लोगों में ये मान्यताएं हैं कि लड़के माता-पिता के बुढ़ापे का सहारा बनेंगे, वंश चलाएंगे और उन्हें पढ़ा लिखा दिया जाये तो कर घर की उन्नति होगी । माता-पिता लड़की के पैदा होने पर शोक प्रकट करते हैं क्योंकि उनको लगता है कि उसके लिए दहेज देना होगा, विवाह के लिए वर ढूंढना होगा और जब तक विवाह नहीं होगा तब तक सुरक्षा प्रदान करनी पड़ेगी तथा बेटी के पढ़ाने लिखाने मैं पैसा खर्च करना लोग पैसे कि बर्बादी समझते हैं।
- हालाँकि वर्तमान में बालिकाओं ने उस संकीर्ण सोच और मिथकों को तोड़ने का कार्य किया है फिर भी बालिकाओं का कार्यक्षेत्र चूल्हे-चौके तक ही सीमित माना जाता है और उनकी भागीदारी को स्वीकार नहीं किए जाने के कारण बालकों की अपेक्षा बालिकाओं का महत्व कम आंका जाता है जिससे लिंग भेदभाव में वृद्धि होती है।
जागरूकता का अभाव (Lack of awareness)
- जागरूकता के अभाव के कारण भी लैंगिक भेदभाव उपजता है। समाज में अभी भी लैंगिक मुद्दों पर जागरूकता की कमी है जिसके कारण बालक-बालिकाओं की देखरेख, शिक्षा-दीक्षा तथा पोषण आदि स्तरों पर भेदभाव किया जाता है। जबकि जागरूक समाज में "बेटा- बेटी एक समान" के मंत्र का अनुसरण करते हुए दोनों का पालन-पोषण और शिक्षा-दीक्षा इत्यादि एक सामान प्रदान किये जाते हैं।
- जागरूकता के अभाव में माना जाता है कि स्त्रियों का कार्यक्षेत्र घर की चार दीवारों के भीतर तक ही सीमित है। अतः उनके शिक्षा तथा पालन पोषण पर ध्यान नहीं दिया जाता और यह भी धारणा है कि लड़कों की अपेक्षा लड़कियां कमजोर होती हैं।
अशिक्षा (Illiteracy)
- लैंगिक भेद में अशिक्षा की भूमिका भी काम नहीं है। अशिक्षित व्यक्ति परिवारों तथा समाज में चले आ रहे मिथकों और अंधविश्वासों पर ही कायम रहते हैं तथा बिना सोचे समझे उनका पालन करते हैं। परिणामतः लड़के का महत्व लड़की की अपेक्षा सर्वोपरि मानते हैं। सभी वस्तुओं तथा सुविधाओं पर प्रथम अधिकार बालकों को प्रदान किया जाता है ।
- शिक्षा के द्वारा व्यक्ति यह चिंतन करता है कि यदि स्त्री नहीं होगी तो मां, बहन, बेटी और पत्नी का अस्तित्व ही नहीं होगा और शिक्षित व्यक्ति यह भी नित्य प्रति देखता है और अनुभव करता है कि स्त्रियां किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से पीछे नहीं है। वे उनसे कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है। इस प्रकार लैंगिक विभेद अशिक्षा और अज्ञानता के परिणाम स्वरूप भी होते हैं।
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आर्थिक तंगी (Cash-strapped)
- भारतवर्ष में आर्थिक तंगी से जूंझ रहे परिवारों की संख्या अधिक है। ऐसे में वे बालिकाओं की अपेक्षा बालक संतान के रूप को अधिक प्राथमिकता देते हैं ताकि वह उनके श्रम में हाथ साझा करे और आर्थिक जिम्मेदारियों का बोझ बांटने का कार्य करें।
- माता-पिता लड़कियों को पराया धन समझ कर रखते हैं तथा जीवन की कमाई का एक बहुत बड़ा भाग लड़की के विवाह में दहेज के रूप में व्यय कर देते हैं। इस प्रकार आर्थिक तंगी से जूझ रहे परिवारों में लड़कियों की अपेक्षा लड़कों की कामना ज्यादा की जाती है जिससे लैंगिक विभेद पनपता है।
सरकारी उदासीनता (Government apathy)
- लिंग विभेद बढ़ने में सरकारी उदासीनता भी एक कारक है। सरकार लिंग में भेदभाव करने वालों के साथ सख्त कार्यवाही नहीं करती है और चोरी-छिपे चिकित्सालय और क्लीनिक पर भ्रूण की जांच कर कन्या भ्रूण हत्या का कार्य अवैध रूप से चल रहा है। सार्वजनिक स्थलों तथा सरकारी ऑफिसों में भी महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा बुरी दृष्टि से देखा जाता है जिससे लैंगिक भेदभाव में वृद्धि होती है।
सांस्कृतिक को प्रथाएं (Cultural practices)
- भारतीय संस्कृति प्राचीन काल से ही पुरुष प्रधान रही है। यद्यपि अपवाद स्वरूप कुछ सशक्त स्त्रियों विदुषियों के उदाहरण अवश्य प्राप्त होते हैं परंतु इतिहास साक्षी है कि सीता और द्रोपदी जैसी स्त्रियों को भी स्त्री होने का परिणाम भुगतना पड़ा था।
- भारतीय संस्कृति में धार्मिक तथा यज्ञ कार्यों में भी पुरुषों की उपस्थिति अपरिहार्य है और कुछ कार्यों को तो स्त्रियों को करने का अधिकार ही नहीं है। ऐसी स्थिति में पुरुष प्रधान हो जाता है और स्त्री का स्थान द्वितीय। यह स्थिति किसी एक वर्ग या समुदाय के स्त्री-पुरुष कि न होकर समग्र स्त्रियों की बनकर लिंग विभेद का रूप धारण कर लेती है।
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सामाजिक कुप्रथायें (Social misconceptions)
भारतीय समाज सूचना और तकनीकी के इस युग में भी तमाम प्रकार की कुप्रथाओं और अंधविश्वासों से भरा हुआ है। भारतीय समाज की कुप्रथाएं कुछ इस प्रकार हैं:-
Very nice
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteIt's tooo good
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