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Monday, 27 April 2020

पर्यावरण का अर्थ । पर्यावरण का क्षेत्र । पर्यावरण के प्रमुख तत्व । Meaning of Environment । Scope । components
 पर्यावरण का अर्थ । पर्यावरण का क्षेत्र । पर्यावरण के प्रमुख तत्व । Meaning of Environment । Scope । components  


पर्यावरण का अर्थ

  • पर्यावरण शब्द अंग्रेजी के Environment शब्द का हिंदी रूपांतर है। Environment का अर्थ है वह बाहरी आवरण जो हमें चारों ओर से घेरे हुए हैं। पर्यावरण से अभिप्राय उन सभी भौतिक दशाओं तथा तत्वों से लिया जाता है जो हमें चारों ओर से घेरे हुए हैं। प्रकृति की जीवित तथा अजीवित तत्वों के समूचे समुच्चय को पर्यावरण कहते हैं। पर्यावरण में चार घटक सम्मिलित हैं:- भूमि, जल, वायु तथा जैविक प्राणी। भूमि, जल तथा वायु भौतिक पर्यावरण का निर्माण करते हैं जबकि पशु पक्षी, पेड़-पौधे तथा मानव जैविक पर्यावरण का निर्माण करते हैं।
  • भौतिक पर्यावरण पर ही जैविक पर्यावरण निर्भर करता है तथा जैविक पर्यावरण भूतल पर प्राणी मात्र को जीवन प्रदान करने के लिए खाद्यान्न सामग्री एवं अन्य वस्तुएं प्रदान करता है। मानव वनस्पति तथा पशु पक्षियों के बिना जीवित नहीं रह सकता। मानव शरीर की रचना भी इन्हीं तत्वों से मिलकर हुई है तथा जीवन की समाप्ति पर शरीर इन्हीं तत्वों में विलीन हो जाता है। भौतिक पर्यावरण के इन तत्वों के कारण अर्थात संतुलित पर्यावरण के कारण ही सौरमंडल में पृथ्वी मात्र एक जीवित ग्रह है और पर्यावरण के इन घटकों के असंतुलन के कारण ही चंद्रमा पर मानव जीवन संभव नहीं है।
  • हमारे वैज्ञानिक मंगल ग्रह पर भी प्राणी जीवन की खोज में लगे हैं। इस प्रकार सौरमंडल में पृथ्वी ऐसा मुख्य ग्रह है जिसमें पर्यावरण के सभी घटक विद्यमान हैं जिनके कारण यहां जीवन संभव हुआ है। सौरमंडल में अन्य कहीं पर जीवन के प्रमाण अभी तक नहीं मिल पाए हैं। पर्यावरण के यह सभी घटक एक दूसरे को प्रभावित करते हैं जिससे इनका विकास होता रहता है। सभी प्राणी वनस्पति, जीव जंतु तथा मानव इसी पर्यावरण के अंग हैं और मानव इस पर्यावरण की सर्वश्रेष्ठ कृति है। पर्यावरण के इन्हीं घटकों से मानव का पोषण होता है और सभी आवश्यकताओं की पूर्ति होती है।

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पर्यावरण की परिभाषा (Definition of Environment)

व्युत्पत्ति की दृष्टि से पर्यावरण शब्द परि +आ +वरण से मिलकर बना है जिसका अर्थ है जो हमें चारों ओर से पूर्ण रूप से घिरे हुए हैं वही पर्यावरण है। इस प्रकार भूमि, जल, वायु, पशु-पक्षी, पेड़ पौधे तथा वनस्पति सब मिलकर पर्यावरण का निर्माण करते हैं क्योंकि ये ही हमें चारों ओर से घेरे हुए हैं।

पर्यावरण की अन्य परिभाषाएं (Other Definitions of Environment)

1. प्रसिद्ध अमेरिकी वैज्ञानिक हर्षको विट्स के अनुसार,"पर्यावरण उन समस्त बाहरी दशाओं और प्रभावों का योग है जो प्राणी के जीवन एवं विकास को प्रभावित करते हैं।"

2. इनसाइक्लोपीडिया ऑफ ब्रिटेनिका के अनुसार,"पर्यावरण उन सभी बाहरी प्रभावों का समूह है जो जीवो को प्राकृतिक भौतिक एवं जैविक शक्ति से प्रभावित करते हैं तथा प्रत्येक जीव को आवृत्ति किए रहते हैं।"

3. प्रसिद्ध विद्वान दार्शनिक तोंस्ले के अनुसार,"चारों ओर पाई जाने वाली प्रभाव कारी दशाओं का वह योग जिसमें जीव रहते हैं वातावरण अथवा पर्यावरण कहलाता है।"


4. विश्वकोश के अनुसार, "पर्यावरण के अंतर्गत उन सभी दशाओं संगठन और प्रभावों को सम्मिलित किया जाता है जो किसी जीव अथवा प्रजाति के उद्भव विकास एवं मृत्यु को प्रभावित करती है।"

5. शैक्षिक अनुसंधान विश्वकोश के अनुसार, "किसी के लिए यह निश्चित करना ठीक नहीं है कि पर्यावरण अध्ययन, भूगोल तथा नागरिक शास्त्र का योग मात्र है निश्चय ही इन विषयों से पर्याप्त सामग्री प्राप्त करता है; मगर यह उसी सामग्री को ग्रहण करता है जो, मानव के वर्तमान तथा दैनिक जीवन के संबंधों को स्पष्ट करती है।"


पर्यावरण का क्षेत्र (Scope Of Environment)

  • मनुष्य ने अपने संकीर्ण लालच व आर्थिक लाभ के लिए प्रकृति के स्वाभाविक पर्यावरण का विनाश कर दिया है। वनस्पतियों की अंधाधुंध कटाई, जीव जंतुओं का शिकार, भूमंडल का बेतहाशा दोहन व शोषण, तीव्र ओद्योगीकरणकरण, यातायात के बढ़ते साधन, जनसंख्या विस्फोट आदि ऐसे कारण हैं जिनसे पर्यावरण में असंतुलन उत्पन्न हो गया है। इस पर्यावरणीय असंतुलन के कारण आज न केवल हमारी सभ्यता व स्वास्थ्य के लिए ही खतरा उत्पन्न हो गया है बल्कि संपूर्ण प्राणी जगत के अस्तित्व के लिए भी खतरा उत्पन्न हो गया है।

  • पर्यावरण को सुधारने तथा उसमें पुनः संतुलन लाने के लिए यह आवश्यक है कि उसका सही वा वैज्ञानिक अध्ययन किया जाए उन कारणों का पता लगाया जाए जिनसे पर्यावरण में असंतुलन आया है तथा उन उपायों का पता लगाकर उन्हें क्रियान्वित किया जाए जिले से पर्यावरण को सुधारा जा सकता है तथा उसमें पुनः संतुलन लाया जा सकता है। इसके लिए हमें पर्यावरण का अध्ययन करना होगा। यह अध्ययन एक कला के रूप में कम और एक विज्ञान के रूप में अधिक करना होगा। पर्यावरण का अध्ययन वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ही किया जा सकता है। यह एक विज्ञान है।

  • पर्यावरण का अध्ययन वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा विधियों से ही किया जा सकता है। एक तत्व, कार्य तथा घटना के क्या प्रभाव होते हैं? कारण-प्रभावों के मध्य क्या संबंध है? यह विज्ञान ही बताता है। उदाहरण के लिए, वानिकीकरण के क्या लाभ हैं? वन विनाश के क्या दुष्परिणाम होते हैं? पर्यावरण प्रदूषण क्या है? इसके क्या परिणाम होते हैं? खनन के परिणाम क्या है? पर्यावरण संतुलन क्या है? आदि का अध्ययन हमें विज्ञान के रूप में ही कर सकते हैं।

  • पर्यावरण अध्ययन में पारिस्थितिकीय, वनस्पति विज्ञान, जीव विज्ञान, खनन विज्ञान, भौतिक विज्ञान, स्वास्थ्य विज्ञान, वायुमंडल विज्ञान, जलमंडल विज्ञान जैसे अनेक विज्ञानों को सम्मिलित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, पर्यावरणीय अध्ययन में यदि हमें जलमंडल का अध्ययन करना है तो विभिन्न नदियों, झीलों तथा सागरों में पाए जाने वाले जल के गुणों, तत्वों तथा विशेषताओं का वैज्ञानिक अध्ययन करना होगा। इस प्रकार हम पाते हैं कि पर्यावरण अध्ययन अपने में एक शुद्ध तथा सशक्त विज्ञान है तथा इसकी अध्ययन प्रणाली पूरी तरह से वैज्ञानिक होती है।

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पर्यावरण के प्रमुख तत्व (Main Components of Environment)

  • पर्यावरण अनेक भौतिक, रासायनिक एवं जैविक तत्वों का समुच्चय होता है जो हमें चारों ओर से घेरे रहता है तथा प्रभावित करता रहता है और स्वयं भी अंतर संबंधों के कारण प्रभावित होता रहता है। मूल रूप से पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि तथा आकाश को पर्यावरण के प्रमुख पंच तत्वों के रूप में स्वीकार किया जाता है। कुछ विद्वानों ने पर्यावरण के तत्वों को दो वर्गों में विभाजित किया है जो निम्न प्रकार है

  1.  प्रत्यक्ष कारक (Direct Factors): जैसे मृदा, आर्द्रता, तापक्रम, भूमिगत जल, भूमि की पोषकता आदि।
  2. अप्रत्यक्ष कारक(Indirect Factors): जैसे भूमि की संरचना, जीवाणु, ऊंचाई, जल, ढाल आदि

वन वनस्पतिवेत्ता ऑस्टिग ने पर्यावरण के निम्नलिखित कारक वर्णित किए हैं:

  • पदार्थ(Substance):  मुद्रा तथा जल
  • दशाएं(Conditions): तापक्रम तथा प्रकाश
  • जीव (Organism): वनस्पति एवं जीव जंतु
  • बल(Forces): वायु एवं गुरुत्वाकर्षण
  • समय(Time)

डोमेनमीर ने पर्यावरण के सात तत्व क्रमशः मृदा, जल, तापक्रम, प्रकाश, वायुमंडल, अग्नि तथा जैविक तत्व वर्णित किए हैं। कुछ विद्वान इन्हें निम्न प्रकार से विभाजित करते हैं।

  • जैविक कारक (Biotic Factors)
  • जलवायु संबंधी कारक (Climatic Factors)
  • भू-आकारिक कारक (Physiographic Factors)
  • मृदा संबंधी कारक (Edaphic Factors)

पर्यावरण के भौगोलिक अध्ययन में भी पर्यावरण के उपर्युक्त तत्वों का ही विवेचन प्राप्त होता है। पर्यावरण के मुख्य तत्व अथवा कारक निम्न प्रकार से वर्गीकृत किए जा सकते हैं:

  • स्थिति (Location)
  • उच्चावच (Relief)
  • जलवायु (Climate)
  • प्राकृतिक वनस्पति (Natural Vegetation)
  • मृदा (Soils)
  • जल राशियां (Water Bodies)

1. स्थिति (Location)

  • स्थिति क्षेत्र विशेष पर्यावरण का पर्याय है तथा इसे ज्यामितीय और निकटवर्ती क्षेत्रों के संदर्भ में प्रकट करते हैं। ज्यामितीय स्थिति से अक्षांश तथा देशांतर के संदर्भ में स्थिति द्वारा समस्त संसार में स्थान विशेष का ज्ञान हो जाता है। इसमें भी सूर्य की गति के साथ संबंध में होने से अक्षांश के संदर्भ में स्थिति महत्वपूर्ण होती है तथा यह जलवायु के प्रतीक होते हैं। इसी प्रकार अक्षांशीय स्थिति से विषुवत रेखीय और ध्रुवीय जलवायु स्पष्ट हो जाती है।

2. उच्चावच (Relief)

  • भू आकार या उच्चावच पर्यावरण का अत्यधिक महत्वपूर्ण तत्व है। पूरी पृथ्वी का धरातल एक समान ना होकर उच्चावच विविधता से युक्त है जो महाद्वीपीय स्तर से लेकर स्थानीय स्तर तक देखी जा सकती है। सामान्य रूप से उच्चावच के तीन रूप होते हैं
  • पर्वत
  • पठार
  • मैदान
  • इनमें भी विस्तार संरचना की क्षेत्रीय विविधता होती है तथा भू अपरदन एवं अपक्षय क्रियाओं से अनेक भू रूपों का जन्म होता है जैसे मरुस्थल चुना प्रदेश हिमानी मैदानी डेल्टा प्रदेश । यह सभी तथ्य जीवमंडल महादेव के पर्यावरण को ही नहीं बल्कि प्रादेशिक तथा पर्यावरण को भी निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उच्चावच का प्रभाव पर्यावरण के अन्य कारकों जैसे जलवायु प्राकृतिक वनस्पति पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है।

3. जलवायु (Climate)

  • जलवायु का प्रभाव वनस्पति मृदा जल राशि और जीव-जंतु आदि पर्यावरण के अन्य कारकों पर सर्वाधिक होने से यह पर्यावरण का नियंत्रणक तत्व स्वीकार किया जाता है। मानव का भोजन वस्त्र आवास व्यवसाय कृषि उत्पादन अब जनसंख्या आदि जलवायु से अत्यधिक प्रभावित होते हैं। जलवायु मूलतः सूर्य टॉप वर्षा आर्द्रता तथा वायु का सम्मिलित रूप है जो संसार में विभिन्न भागों में ही नहीं बल्कि देश में भी परिवर्तित होती रहती है। सूर्यताप से वनस्पति की अनेक क्रियाएं जैसे फोटोसिंथेसिस स्वसन क्लोरोफिल बनाना गर्मी प्राप्त करना बीजों का अंकुरण विकास तथा वितरण प्रभावित होते हैं और जीव जंतु तथा मानव भी इससे प्रभावित होते हैं।

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4. प्राकृतिक वनस्पति (Natural Vegetation) 

  • प्राकृतिक वनस्पति के अंतर्गत सघन वनों से लेकर कटीली झाड़ियों घास तथा छोटे पौधों को शामिल किया जाता है जो जलवायु उच्चावच तथा मृदा से अस्तित्व में आती है एवं इनमें जो भी परिवर्तन होता है उनके अनुरूप प्राकृतिक वनस्पति में भी परिवर्तन होता है वनस्पति को जलवायु का नियंत्रक माना जाता है यह तापमान को उच्च होने से रोकती है तथा वायुमंडल की आर्द्रता में वृद्धि करके वर्षा में सहायक बनती है। 
  • वनस्पति वायुमंडल में विभिन्न गैसों की मात्रा मैं असंतुलन रखती है तथा उनसे निकलने वाली ऑक्सीजन पर्यावरण को दूषित होने से बचाती है। वायुमंडल और वायु प्रदूषण को रोकने में वनस्पति महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  •  प्राकृतिक वनस्पति मृदा की संरक्षक होती है तथा अपरदन और कटाव को रूकती है तथा इससे मृदा को उर्वरता के लिए आवश्यक जीवांश भी मिलते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं की प्राकृतिक वनस्पति हुआ पर्यावरण को स्वच्छता प्रदान करती है।

5. मृदा (Soils)

  • धरातल की ऊपरी परत का सामान्य नाम मृदा है जिसका निर्माण चट्टानों में निरंतर ऑफिस है तथा अपरदन और कार्बनिक पदार्थों के मिश्रण से होता है। यह उपजो तथा वनस्पतियों को पूछ सकता प्रदान करती है तथा कृषि का मुख्य आधार है।
  •  सामान्य रूप से रेतीली मृदा चिकनी मरदा मधुमति मैदा होती है। छारीय एवं अम्लीय मृदा सामान्य पौधों की वृद्धि में बाधक होती।पर्यावरण के तत्व के रूप में मृदा वनस्पति को प्रदान करने वाले तथा कृषि उपज ओके उत्पादन में सहायक और सम संग्रह पर वाष्पीकरण की प्रक्रिया में सहयोग प्रदान करती है।

7. जल राशियां (Water Bodies)

  • महासागर सागर जिले नदियां प्राकृतिक जलाशय आदि प्राकृतिक जल राशियां हैं।महासागर संपूर्ण संसार के जीव जगत और पर्यावरण को नियंत्रित करते हैं वायुमंडल की नमी की मात्रा वाष्पीकरण तापक्रम पर इसका प्रभाव पड़ता है तथा समुद्री हमारा जल वर्षों में सहायक होती हैं।जिससे समुद्री जीव जंतु वनस्पति का वहां के पर्यावरण के अनुरूप विकास होता है नदिया जल प्रदायक होती हैं एवं मैदानी भागों को उपजाऊ बनाती हैं।

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