दर्शन का अर्थ
दर्शन अंग्रेजी भाषा के फिलॉस्फी ( Phylosphy ) शब्द का रूपांतर है। इस शब्द की उत्पत्ति ग्रीक के दो शब्दों 'फिलोस' तथा 'सोफिया' से हुई है। 'फिलोस' का अर्थ है - प्रेम अथवा अनुराग और 'सोफिया' का अर्थ है - ज्ञान ।
इस प्रकार फिलॉसफी अर्थात दर्शन का शाब्दिक अर्थ ज्ञान अनुराग अथवा ज्ञान का प्रेम है। ज्ञान तथा सत्य की खोज करना तथा उसके वास्तविक स्वरूप का प्रयोग करने वाले व्यक्ति को दर्शनिक कहा जाता है।
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दर्शन का अर्थ एवं परिभाषा | Darshan Ka Arth Evam Paribhasha |
प्लेटो ने अपनी पुस्तक रिपब्लिक में लिखा है,
''जो व्यक्ति ज्ञान प्राप्त करने तथा नई नई बातों को जानने के लिए रुचि प्रकट करता है तथा जो कभी संतुष्ट नहीं होता, उसे दार्शनिक कहा जाता है।"
शिक्षा एवं फिलॉसफी के संदर्भ में इसके अर्थ की व्याख्या की गई है। फिलॉसफी को शिक्षा का सिद्धांत कहते हैं। फिलोसोफी की व्यवहारिकता शिक्षा द्वारा की जाती है परंतु अन्य विषयों की भांति दर्शन भी एक अध्ययन विषय है जिसके अंतर्गत सत्य का क्या अर्थ है? यह खोजा जाता है।
प्लेटो के अनुसार,
"फिलॉसफी संपूर्ण सत्य को परिभाषित करने का प्रयास करता है।"
सुकरात के अनुसार,
"जो निरंतर अपने जीवन के संबंध में पूर्ण को देखने की इच्छा रखता है उसे दार्शनिक कहा जाता है। सत्य की प्रकृति कुछ भी हो सकती है।"
फिलॉस्फर सत्य के प्रति दृष्टि को स्नेह करता है। फ्लोसफी के अंतर्गत सत्य की प्रकृति को जानने का प्रयास किया जाता है परंतु यह संभव नहीं कि वह सत्य के संबंध में कोई ठोस निष्कर्ष पर पहुंच सके।
यदि फ्लॉसफर अपनी खोज में किसी अंतिम निष्कर्ष पर पहुंच सके तब फिलॉसफी की प्रक्रिया का अस्तित्व नहीं रहेगा। फिलॉसफी में माननीय मनस्य सदैव सत्य की खोज में लगा रहता है जिससे सत्य के संबंध में कुछ निष्कर्ष निकाला जा सके। बाद में वह निष्कर्ष फिलॉस्फी का न होकर विज्ञान का पक्ष हो जाता है।
दर्शन की परिभाषा
१. जेएस रॉस के अनुसार,
"फिलॉसफी व शिक्षा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं फिलॉसफी सैद्धांतिक पक्ष है और शिक्षा उसका व्यवहारिक पक्ष है।"
२. सेलर्स के अनुसार,
"फिलॉसफी विषय विज्ञानो का संकलन है। जैसेेेे ज्ञान मीमांसा, तर्कशास्त्र, नीति शास्त्र, सृष्टि शास्त्र, और सौंदर्यशास्त्र तथा साथ ही एक समुचित सर्वेक्षण भी है।
३. बट्रेंड रसैल के अनुसार,
"फिलॉसफी भी अन्य अध्ययन विषयों की भांति एक ज्ञान की खोज के प्रति प्रयास है।
४. हक्सले के अनुसार,
"मनुष्य अपने जीवन दर्शन तथा संसार के विषय में अपने अपने धारणाओं के अनुसार जीवन व्यतीत करते हैं।"
५. जॉन डीवी के अनुुुुसार
"जब भी हम दर्शन का गंभीरता से चिंतन करेंगे तभी उसके ज्ञान का प्रभाव जीवन पर पड़ेगा।"
६. आरडब्ल्यू सेलर्स के अनुसार
"दर्शन उस निरंतर प्रयास को कहते हैं जिसके द्वारा हम अपनी और संसार की प्रकृति के संबंध में क्रमबद्ध ज्ञान द्वारा एक सूक्ष्म दृष्टि प्राप्त करने की चेष्टा करते हैं।"
७. बर्टन्ड रसैल के अनुसाार
"अन्य क्रियाओं के समान दर्शन का मुख्य उद्देश्य ज्ञान की प्राप्ति है।"
८. सैलार्स के अनुुुुुुसार
"व्यवस्थित प्रतिबिंबो के माध्यम से, व्यक्ति, प्रकृति तथा विश्व को जानने का अनवरत प्रयत्न ही दर्शन है।"
शिक्षा क्या है ?
(What is Education)
शिक्षा एक सविचार प्रक्रिया है जिसका कार्य दार्शनिक मान्यताओं के अनुरूप समाज तथा व्यक्ति का निर्माण करना है। जे. एस मकेंजी के अनुसार
"शिक्षा जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है आनुभाविक विकास से इसमें अभिवृद्धि होती है इस प्रकार वह जीवन का साध्य है।"
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि शिक्षा जीवन पर्यंत चलने वाली सविचार तथा अविच्छिन्न प्रक्रिया है, जो जीवन के दार्शनिक पक्ष को उजागर करती है तथा मनुष्य को समाज में रहने योग्य बनाती है। यह संस्कृति का संरक्षण ही नहीं करती बल्कि आगामी पीढ़ी की संस्कृति तथा परंपराओं, दर्शन तथा ज्ञान के अज्ञात सोच का भी हस्तानांतरण करती है।
शिक्षा जीवन की एक प्रक्रिया है। शिक्षा के माध्यम से बालक का विकास होता है और वह समाज में सुखमय जीवन व्यतीत है करने की दशाओं का ज्ञान प्राप्त करने लगता है। शिक्षा के द्वारा मनुष्य अपने जीवन की उपलब्धि प्राप्त करता है। इस प्रकार शिक्षा दो कार्य करती है
१. शिक्षा मानव की प्रकृति साथियों की प्रकृति तथा विश्व की प्रकृति के साथ समन्वय करने का प्रयास करती है।
२. शिक्षा मानव की शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक सभी शक्तियों का व्यवस्थित विकास है जिन्हें वह अपने व समाज के हित में प्रयुक्त करता है और उसकी सृष्टा को लक्ष्य बनाकर उनको संयुक्त करता है।
ऐडलर के अनुसार
"शिक्षा व प्रक्रिया है जिसके द्वारा मानव की वे शक्तियां जो अभ्यास द्वारा परिवर्तित होने योग्य हैं, अच्छी आदतों के अभ्यास द्वारा पूर्णता को प्राप्त होती हैं और उसके लिए बड़े कलात्मक ढंग से साधन निकाले जाते हैं, जिनको मानव स्वयं व अन्य मनुष्यों को सहायता देने हेतु निर्देशित लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए प्रयोग में लाते हैं।"
बटलर के अनुसार
"यह कहा जाता है कि शिक्षित व्यक्ति के हाथ में तेज धार वाली कुल्हाड़ी है और अशिक्षित के हाथ में कुंठित कुल्हाड़ी। शिक्षा कुंठित कुल्हाड़ी को तेज बनाने का कार्य करती है।"
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