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Sunday, 9 October 2022

कमाल कि बात है कि आज लोग कहते है कि आज कलयुग चल रहा है लेकिन अगर आप इतिहास के पन्नो को पलटकर देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि असली सतयुग तो अब प्रारंभ हुआ है कलयुग तो बहुत पहले चल रहा था जिसके अंश समाज में आज भी विद्यमान है। आइए जानते है कैसे ?

Asli Satyug to Ab Shuru Hua Hai
असली सतयुग तो अब चल रहा है कलयुग तो पहले चल रहा था | Asli Satyug to Ab Shuru Hua Hai 

एक जमाना था जब समाज जाति आधारित वर्ण व्यवस्था में बटा हुआ था। मानव को मानव न समझकर जानवर समझा जाता था। मानव ही मानव पर जानवरों जैसा सलूक करते थे। कुछ मानवों का स्तर अत्यंत नीचा था जबकि कुछ मानव मात्र ही सृष्टि के सर्वाधिक बुद्धिमान और शक्तिशाली होने का दावा किया करते थे। 


उन सर्वाधिक बुद्धिमान और शक्तिशाली महामानव में कभी यह भावना नहीं आती थी कि वे जिन मनुष्यों पर अत्याचार और उनके साथ अनुचित व्यवहार कर रहे हैं उनका रक्त भी स्वयं उन्ही के समान लाल रंग का है । उन्हें भी देव पीड़ा होती है।निम्नलिखित बिंदुओं से स्पष्ट हो जाएगा की पूर्व युग कलयुग था जहां अनेक सामाजिक कुरीतियां विद्यमान  थीं।

  • महिलाओ को पति की लाश के साथ जिंदा जला दिया जाता था। सर्वाधिक बुद्धिमान मानव के अंदर यह भावना तक नहीं आती थी कि जीवित जीव को इस तरह चिता में फेंकने पर कितनी पीड़ा होती होगी। वे महामानव इतना भी नहीं जानते थे कि किसी के मरने या जीवित होने में स्त्री का कोई हाथ नहीं है।


  • विधवा स्त्रियों को पुनर्विवाह का अधिकार नहीं था। उस युग को सतयुग कहने वाले मनुष्य को इतना ज्ञान तक नहीं था कि महिलाओं को शारीरिक पीड़ा कितना कष्ट पहुंचाती होगी। पुनर्विवाह न होने के कारण उनके साथ जबरन वह गैर मानवीय तरीके से संबंध वही महामानव बनाया करते थे जो उस युग को सतयुग कहा करते थे 


  • महिलाओ को पढ़ने का अधिकार नहीं था। उस युग को सतयुग कहने वाले मनुष्य कायर थे क्योंकि वे जानते थे यदि स्त्री शिक्षित हुई तो वह अपने ऊपर होने वाले शारीरिक व मानसिक अत्याचार का विरोध करेगी और हर क्षेत्र में उनसे बेहतर करने की सामर्थ हासिल कर लेगी। इसी कारण वे स्त्री को शिक्षा से वंचित रखा करते थे।


ऊपर से लोग कहते है कि वो सतयुग था। अगर ऐसे युग को जो लोग सतयुग कहते थे तो मैं समझता हूं उन लोगो ने सतयुग अर्थात सत्य के युग को भी अपनी गंदी मानसिकता के अनुरूप बांट लिया था और अपने स्वार्थ और लिप्सा के अनुसार सत्य को भी अपने पक्ष में कर लिया था। भला सत्य असत्य भी पक्षावादी हो सकते है क्या?


आज जब उपरोक्त सामाजिक बुराइयों से समाज को धीरे धीरे छुटकारा मिल रहा है तो कुछ लोग कहते है कि कलयुग चल रहा है। इसका आशय यह है की उन्हें कलयुग की भी परिभाषा का ज्ञान नहीं है। 


  • अरे आज तो सतयुग की शुरुआत हुई है क्योंकि अब हर मानव अपना अधिकार प्राप्त करने की राह पर है। वर्ण व्यवस्था आधारित कर्म व्यवस्था खत्म हो जाने से आज हर जाति का मनुष्य देश के हर क्षेत्र में अपनी क्षमता अनुसार कार्य करके देश की प्रगति में योगदान दे रहा है।



  • स्त्रियों को शिक्षा प्राप्त हो रही है जिसके चलते शिक्षा और समाज के हर एक पहलू पर इस्त्री पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है। सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक और तमाम क्षेत्रों में स्त्रियों ने आज यह साबित कर दिया है कि पुराना काल कलयुग था जिसमें उन्हें यह मौके नहीं दिए गए और वह अपनी उन्नति से वंचित रह गई थीं।


  • आज स्त्रियों को पुनर्विवाह की संविधानिक शक्ति प्राप्त है जिसके चलते उनको यह स्वच्छंदता प्राप्त है कि वह बचे हुए जीवन को बोझ न समझकर एक नए सिरे से जीवन की शुरुआत कर सकें और पाखंडियों के चंगुल में फसने की बजाय उन्नति की राह पर चल सके।


अगर अपनी आंखों से जाति, धर्म और कुरीतियों का पर्दा उठा कर देखा जाए और सच्चे हृदय से माननीय विकास की दृष्टि से आधुनिक समाज को देखा जाए तो ज्ञात होगा असली सतयुग की शुरुआत तो अब हुई है और यह सतयुग आगे चलना बहुत आवश्यक है तभी जाकर समाज के हर पहलू को अपनी सामर्थ्य साबित करने का मौका प्राप्त होगा।

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