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डीएसएसएसबी पेपर 1 हिंदी अपठित गद्यांश | dsssb paper 1 hindi unseen passage |
अपठित गद्यांश
"स्थूल एवं बाहरी पदार्थ सूक्ष्म एवं मानसिक पदार्थों एवं भागों की अपेक्षा अधिक महत्व के विषय नहीं है। जो व्यक्ति रचनात्मक कार्य करने में समर्थ है, उसे भौतिक स्थूल लाभ अथवा प्रलोभन न तो लुभाते हैं और न ही प्रोत्साहित करते हैं।
विश्व में विचारक दस में से एक ही व्यक्ति होता है। उसमें भौतिक महत्वाकांक्षाएं अत्यल्प होती हैं। 'पूँजी' का रचयिता कार्ल मार्क्स जीवन भर निर्धनता से जूझता रहा। राज्य अधिकारियों ने सुकरात को मरवा डाला पर वह जीवन के अंतिम क्षणों में भी शांत था क्योंकि वह अपने जीवन के लक्ष्य का भली-भांति निर्वाह कर चुका था। यदि उसे पुरस्कृत किया जाता, प्रतिष्ठा के अम्बारों से लाद लिया जाता परंतु अपना काम न करने दिया जाता तो निश्चय ही वह अनुभव करता कि उसे कठोर रूप से दंडित किया गया है। ऐसे अनेक अवसर आते हैं जब हमें बाहरी सुख सुविधाएं आकर्षित करते हैं, वे अच्छे जीवन के लिए अनिवार्य लगने लगते हैं, किंतु महत्वपूर्ण यह है कि क्या हमने जीवन का उद्देश्य प्राप्त कर लिया है? यदि इसका उत्तर 'हां' है तो बाहरी वस्तुओं का अभाव नहीं खलेगा और यदि इसका उत्तर 'नहीं' है तो हमें अपने को भटकने से बचाना होगा और लक्ष्य की ओर बढ़ना होगा।"
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